भजन 110:1 परमेश् वर हमर प्रभु केँ कहलथिन, “जखन धरि हम नहि बनब, ताबत धरि अहाँ हमर दहिना कात बैसल रहू।” तोहर शत्रु तोहर पैरक ठेहुन। 110:2 परमेश् वर अहाँक सामर्थ् यक लाठी सियोन सँ पठा देताह अपन शत्रु सभक बीच। 110:3 तोहर लोक तोहर शक्तिक दिन, सौन्दर्य मे इच्छुक रहत भोरक कोखि सँ पवित्रता, अहाँ मे अपन जवानीक ओस अछि। 110:4 परमेश् वर शपथ लेने छथि, आ पश्चाताप नहि करताह, “अहाँ अनन्त काल धरि पुरोहित छी।” मल्कीसेदेक के क्रम के बाद। 110:5 तोहर दहिना कात प्रभु अपन दिन मे राजा सभ केँ मारि देताह क्रोध. 110:6 ओ जाति-जाति सभक बीच न्याय करत, ओ स्थान सभ केँ मृत् यु सँ भरत शरीर सभ; ओ कतेको देशक माथ पर चोट करत। 110:7 ओ बाट मे धार मे पीबि लेत, तेँ ओ ओहि धार केँ ऊपर उठाओत माथ.