स्तोत्र
75:1 हे परमेश्वर, क्या हम तेरा धन्यवाद करते हैं, क्या हम तेरा धन्यवाद करते हैं?
कि तेरा नाम तेरे आश्चर्यकर्मोंके निकट है।
75:2 जब मैं मण्डली को ग्रहण करूंगा, तब मैं खराई से न्याय करूंगा।
75:3 पृय्वी अपके सब रहनेवालोंसमेत गल रही है;
इसके खंभे। सेला।
75:4 मैं ने मूर्खोंसे कहा, मूर्खता न करो; और दुष्टोंसे मत उठा
सींग ऊपर:
75:5 अपके सींग को ऊंचा न करो; गर्दन पर अकड़कर बातें न करो।
75:6 क्योंकि उन्नति न तो पूर्व से आती है, न पच्छिम से, न किसी ओर से
दक्षिण।
75:7 परन्तु परमेश्वर न्यायी है; वह एक को गिराता और दूसरे को स्थिर करता है।
75:8 क्योंकि यहोवा के हाथ में कटोरा है, और दाखमधु लाल है; यह है
मिश्रण से भरा हुआ; और वह उसी में से उण्डेलता है, परन्तु उसका तलछट,
पृथ्वी के सब दुष्ट उन्हें मरोड़कर पीएंगे।
75:9 परन्तु मैं सदा के लिथे प्रचार करूंगा; मैं याकूब के परमेश्वर का भजन गाऊंगा।
75:10 दुष्टों के सब सींग मैं काट डालूंगा; लेकिन के सींग
धर्मी को ऊंचा किया जाएगा।