स्तोत्र
56:1 हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर; क्योंकि मनुष्य मुझे निगल लेना चाहता है; वह लड़ रहा है
प्रतिदिन मुझ पर अत्याचार करता है।
56:2 मेरे शत्रु प्रति दिन मुझे निगल लेंगे, क्योंकि लड़नेवाले बहुत हैं
मेरे विरुद्ध, हे परमप्रधान!
56:3 जिस समय मैं डरता हूं, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा।
56:4 मैं परमेश्वर की ओर से उसके वचन की स्तुति करूंगा, मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; मैं नहीं करूंगा
डरो कि शरीर मेरा क्या कर सकता है।
56:5 प्रति दिन वे मेरे वचनों को तोड़ डालते हैं; उनकी सारी कल्पनाएं मेरे विरुद्ध होती हैं
बुराई।
56:6 वे इकट्ठे होते हैं, वे छिप जाते हैं, वे मुझ को चिन्हित करते हैं
कदम, जब वे मेरी आत्मा की प्रतीक्षा करते हैं।
56:7 क्या वे अधर्म करके बच निकलेंगे? अपने क्रोध से प्रजा को गिरा दे, हे!
भगवान।
56:8 तू मेरे आवारागर्दी का वर्णन करता है; तू मेरे आंसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले; क्या वे हैं
आपकी किताब में नहीं है?
56:9 जब मैं तेरी दोहाई दूंगा, तब मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे; यह मैं जानता हूं;
क्योंकि परमेश्वर मेरे लिए है।
56:10 मैं परमेश्वर की ओर से उसके वचन की स्तुति करूंगा; यहोवा की ओर से मैं उसके वचन की स्तुति करूंगा।
56:11 मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; मैं न डरूंगा कि मनुष्य क्या कर सकता है
मुझे।
56:12 हे परमेश्वर, तेरी मन्नतें मुझ पर हैं; मैं तेरा धन्यवाद करूंगा।
56:13 क्योंकि तू ने मेरे प्राण को मृत्यु से बचाया है; क्या तू मेरे प्राण को नहीं छुड़ाएगा?
पैर गिरने से, कि मैं परमेश्वर के सामने प्रकाश के प्रकाश में चल सकूं
जीविका?