स्तोत्र
52:1 हे शूरवीर, तू क्यों अपने ऊपर शरारत करने का घमण्ड करता है? भगवान की भलाई
निरंतर सहन करता है।
52:2 तेरी जीभ अनर्थ की कल्पना करती है; पैने उस्तरे की नाईं छल से काम करता है।
52:3 तू भलाई से बढ़कर बुराई में प्रीति रखता है; और बोलने के बजाय झूठ बोलना
धार्मिकता। सेला।
52:4 हे छली जीभ, तू सब विनाश करनेवाली बातों से प्रीति रखती है।
52:5 इसी रीति से परमेश्वर तुझे सदा के लिथे नाश करेगा, वह तुझे उठा भी लेगा, और
तुझे अपके निवासस्यान से निकाल दे, और अपके देश में से उखाड़ दे
जीवित। सेला।
52:6 धर्मी लोग भी देखकर डरेंगे, और उस पर हंसेंगे।
52:7 देखो, यह वही पुरूष है, जिस ने परमेश्वर को अपना बल नहीं ठहराया; लेकिन भरोसा किया
उसके धन की बहुतायत हुई, और उसने अपनी दुष्टता में खुद को मजबूत किया।
52:8 परन्तु मैं परमेश्वर के भवन में हरे जैतून के पेड़ के समान हूं; मेरा भरोसा उस पर है
हमेशा के लिए भगवान की दया।
52:9 मैं सदा तेरी स्तुति करूंगा, क्योंकि तू ने यह किया है; और मैं बाट जोहूंगा
तेरे नाम पर; क्योंकि यह तेरे भक्तों की दृष्टि में भला है।