स्तोत्र
14:1 मूर्ख ने अपके मन में कहा है, कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे भ्रष्ट हैं, वे
घिनौने काम किए हैं, कोई सुकर्मी नहीं।
14:2 यहोवा ने स्वर्ग से आदमियों पर दृष्टि की, यह देखने के लिये कि क्या
कुछ ऐसे थे जो समझते थे, और परमेश्वर को खोजते थे।
14:3 वे सब के सब अलग हो गए हैं, वे सब के सब मैले हो गए हैं;
कोई भलाई करनेवाला नहीं, नहीं, एक भी नहीं।
14:4 क्या सब अनर्थकारी काम करनेवाले ज्ञान नहीं रखते? जो मेरे लोगों को खा जाते हैं
वे रोटी खाते हैं, और यहोवा को नहीं पुकारते।
14:5 वहां वे बड़े भय में थे, क्योंकि परमेश्वर जातियों की पीढ़ी में है
न्याय परायण।
14:6 तुम ने कंगालों की युक्ति को तुच्छ जाना, क्योंकि यहोवा उसका शरणस्थान है।
14:7 भला होता कि इस्राएल का उद्धार सिय्योन से निकल आता! जब यहोवा
अपक्की प्रजा को बंधुआई से लौटा ले आता है, याकूब मगन, और
इस्राएल आनन्दित होगा।